शुक्र (Venus;प्रतीक:),सूर्य से दूसराग्रह है और प्रत्येक 224.7पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है।[12]शुक्र नाम उच्चारण मेंशुक्ल से मिलता हुआ है जिसका अर्थ है श्वेत या उजला। यह ग्रह भी श्वेत वर्ण का उज्ज्वल प्रकृति का ही है।चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है।[13] चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसकाप्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लिए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है।
शुक्र एकस्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों में पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्रसल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह कोदृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसकावायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों में सघनतम है और अधिकाँशतःकार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह परवायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना में 92 गुना है। 735 K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्रसौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोईकार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते है[14]लेकिनअनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |[15] पानी की अधिकांश संभावना प्रकाश-वियोजित (Photodissociation) रही होने की, व, ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के अभाव की वजह से, मुक्त हाइड्रोजनसौर वायु द्वारा ग्रहों के बीच अंतरिक्ष में बहा दी गई है।[16]शुक्र की भूमी बिखरे शिलाखंडों का एक सूखा मरुद्यान है और समय-समय परज्वालामुखीकरण द्वारा तरोताजा की हुई है। 2020 में हुए दूरदर्शी शोध में इसके वायुमंडल मेंफोस्फिन गैस के होने के प्रमाण मिले जिससे शुक्र पर जीवन की संभावना को पुनः परिकल्पित किया जा रहा है।
शुक्र चार सौर स्थलीय ग्रहों में से एक है। जिसका अर्थ है कि पृथ्वी की ही तरह यह एक चट्टानी पिंड है। आकार व द्रव्यमान में यह पृथ्वी के समान है और अक्सर पृथ्वी की "बहन" या "जुड़वा " के रूप में वर्णित किया गया है।[17] शुक्र का व्यास 12,092 किमी (पृथ्वी की तुलना में केवल 650 किमी कम) और द्रव्यमान पृथ्वी का 81.5% है। अपने घनेकार्बन डाइऑक्साइड युक्तवातावरण के कारण शुक्र की सतही परिस्थितियाँ पृथ्वी पर की तुलना मे बिल्कुल भिन्न है। शुक्र के वायुमंडलीय द्रव्यमान का 96.5% कार्बन डाइऑक्साइड और शेष 3.5% का अधिकांशनाइट्रोजन रहा है।[18]
20 वीं सदी में ग्रहीय विज्ञान द्वारा कुछ सतही रहस्यों को उजागर करने तक शुक्र की सतह अटकलों का विषय थी | अंततः इसका 1990-91 में मैगलन परियोजना द्वारा विस्तार में मापन किया गया | यहाँ की भूमि विस्तृत ज्वालामुखीकरण के प्रमाण पेश करती है और वातावरण मेंसल्फर वहाँ हाल ही में हुए कुछ उदगार का संकेत हो सकती है।[19][20]
शुक्र की सतह का करीबन 80% हिस्सा चिकने और ज्वालामुखीय मैदानों से आच्छादित है। जिनमें से 70% सलवटी चोटीदार मैदानों से व 10% चिकनी या लोदार मैदानों से बना है।[21]दो उच्चभूमि " महाद्वीप " इसके सतही क्षेत्र के शेष को संवारता है जिसमे से एक ग्रह के उत्तरी गोलार्ध और एक अन्य भूमध्यरेखा के बस दक्षिण में स्थित है। उत्तरी महाद्वीप को बेबीलोन के प्यार की देवी इश्तार के नाम परइश्तार टेरा कहा गया है और आकार तकरीबन ऑस्ट्रेलिया जितना है। शुक्र का सर्वोच्च पर्वतमैक्सवेल मोंटेस इश्तार टेरा पर स्थित है। इसका शिखर शुक्र की औसत सतही उच्चतांश से 11 किमी ऊपर है। दक्षिणी महाद्वीपएफ्रोडाईट टेरा ग्रीक की प्यार की देवी के नाम पर है और लगभग दक्षिण अमेरिका के आकार का यह महाद्वीप दोनों उच्चभूम क्षेत्रों में बड़ा है। दरारों और भ्रंशो के संजाल ने इस क्षेत्र के अधिकाँश भाग को घेरा हुआ है।[22]
शुक्र पर दृश्यमान किसी भीज्वालामुख-कुण्ड के साथलावा प्रवाह के प्रमाण का अभाव एक पहेली बना हुआ है। ग्रह पर कुछप्रहार क्रेटर है जो सतह के अपेक्षाकृत युवा होने का प्रदर्शन करते है और लगभग 30-60 करोड़ साल पुराने है।[23][24] आमतौर पर स्थलीय ग्रहों पर पाए जाने वाले प्रहार क्रेटरों, पहाड़ों और घाटियों के अलावा, शुक्र पर अनेकों अद्वितीय भौगोलिक संरचनाएं है। इन संरचनाओं में, चपटे शिखर वाली ज्वालामुखी संरचनाएं "फेरा" कहलाती है, यह कुछ मालपुआ जैसी दिखती है और आकार में 20-50 किमी विस्तार में होती है। 100-1,000 मीटर ऊँची दरार युक्त सितारा-सदृश्य चक्रीय प्रणाली को "नोवा" कहा जाता है। चक्रीय और संकेंद्रित दरारों, दोनों के साथ मकड़ी के जाले से मिलती-जुलती संरचनाएं "अर्कनोइड" के रूप में जानी जाती है। "कोरोना" दरारों से सजे वृत्ताकार छल्ले है और कभी-कभी गड्ढों से घिरे होते है। इन संरचनाओं के मूल ज्वालामुखी में हैं।[25]
शुक्र पर भौतिक आकृतियों के देशांतरों को उनकी प्रधान मध्याह्न रेखा के सापेक्ष व्यक्त किया गया है। मूल प्रधान मध्याह्न रेखा अल्फा रीजियो के दक्षिण मे स्थित उज्ज्वल अंडाकार आकृति "एव" के केंद्र से होकर गुजरती है।[28] वेनरा मिशन पूरा होने के बाद, प्रधान मध्याह्न रेखा को एरियाडन क्रेटर से होकर पारित करने के लिए नए सिरे से परिभाषित किया गया था |[29][30]
शुक्र की अधिकतर सतह ज्वालामुखी गतिविधि द्वारा निर्मित नजर आती है। शुक्र पर पृथ्वी की तरह अनेकानेक ज्वालामुखी है और इसके प्रत्येक 100 किमी के दायरे मे कुछ 167 के आसपास बड़े ज्वालामुखी है। पृथ्वी पर इस आकार की ज्वालामुखी जटिलता केवलहवाई के बड़े द्वीप पर है।[25] यह इसलिए नहीं कि शुक्र ज्वालामुखी नज़रिए से पृथ्वी की तुलना में अधिक सक्रिय है, बल्कि इसकी पर्पटी पुरानी है। पृथ्वी कीसमुद्री पर्पटीविवर्तनिक प्लेटों की सीमाओं परभूगर्भिय प्रक्रिया द्वारा निरंतर पुनर्नवीकृत कर दी जाती है और करीब १० करोड़ वर्ष औसत उम्र की है,[31] जबकि शुक्र की सतह 30-60 करोड़ वर्ष पुरानी होने का अनुमान है।[32]
शुक्र पर अविरत ज्वालामुखीता के लिए अनेक प्रमाण बिन्दु मौजूद हैं। सोवियतवेनेरा कार्यक्रम के दौरान,वेनेरा 11 औरवेनेरा 12 प्रोब ने बिजली के एक निरंतर प्रवाह का पता लगाया और वेनेरा 12 ने अपने अवतरण के बाद एक शक्तिशालीगर्जन की करताल दर्ज की | यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी केवीनस एक्सप्रेस ने उँचे वायुमंडल में प्रचुर मात्रा में बिजली दर्ज की |[33] जबकि पृथ्वी पर बारिश गरज-तूफ़ान लाती है, वहीं शुक्र की सतह पर कोई वर्षा नहीं होती है (हालांकि उपरी वायुमंडल में यह वर्षासल्फ्युरिक अम्ल करता है जो सतह से करीब 25 किमी उपर वाष्पीकृत कर दी जाती है)। एक संभावना है एक ज्वालामुखी विस्फोट से उडी राख ने बिजली पैदा की थी | एक अन्य प्रमाण वायुमंडल में मौजूदसल्फर डाइऑक्साइड सांद्रता के माप से आता है, जिसे 1978 और 1986 के बीच एक 10 के कारक के साथ बूंदों से पाया गया था। इसका मतलब यह हो सकता है कि पहले बड़े पैमाने पर ज्वालामुखीय विस्फोट से स्तर बढ़ाया गया था।[34]
शुक्र के सतह परप्रहार क्रेटर (छवि रडार डेटा से पुनर्निर्मित है।
शुक्र पर समूचे हजार भर प्रहार क्रेटर सतह भर मे समान रूप से वितरित है। पृथ्वी और चंद्रमा जैसे अन्य क्रेटरयुक्त निकायों पर, क्रेटर गिरावट की अवस्थाओं की एक रेंज दिखाते हैं। चंद्रमा पर गिरावट का कारण उत्तरोत्तर ट्क्कर है, तो वहीं पृथ्वी पर यह हवा और बारिश के कटाव के कारण होती है। शुक्र पर लगभग 85% क्रेटर प्राचीन हालत में हैं। क्रेटरों की संख्या, अपनी सुसंरक्षित परिस्थिती के सानिध्य के साथ, करीब 30-60 करोड़ वर्ष पूर्व की एक वैश्विक पुनर्सतहीकरण घटना के अधीन इस ग्रह के गुजरने का संकेत करती है,[35][36] ज्वालामुखीकरण मे पतन का अनुसरण करती है।[37] जहां एक ओर पृथ्वी की पर्पटी निरंतर प्रक्रियारत है, वहीं शुक्र को इस तरह की प्रक्रिया के पोषण के लिए असमर्थ समझा गया है। बिना प्लेट विवर्तनिकी के बावजूद अपने मेंटल से गर्मी फैलाने के लिए शुक्र एक चक्रीय प्रक्रिया से होकर गुजरता है जिसमें मेंटल तापमान वृद्धि पर्पटी के कमजोर होने के लिए आवश्यक चरम स्तर तक पहुंचने तक जारी रहती है | फिर, लगभग 10 करोड़ वर्षों की अवधि में दबाव एक विशाल पैमाने पर होता है जो पर्पटी का पूरी तरह से पुनर्नवीकरण कर देता है।[25]
शुक्र क्रेटरों के परास व्यास में 3 किमी से लेकर 280 किमी तक है। आगंतुक निकायों पर घने वायुमंडल के प्रभाव के कारण 3 किमी से कम कोई क्रेटर नहीं है। एक निश्चितगतिज ऊर्जा से कम के साथ आने वाली वस्तुओं को वायुमंडल ने इतना धीमा किया हैं कि वें एक प्रहार क्रेटर नहीं बना पाते हैं।[38] व्यास मे 50 किमी से कम के आने वाले प्रक्ष्येप खंड-खंड हो जाएंगे और सतह पर पहुंचने से पहले ही वायुमंडल में भस्म हो जाएंगे।[39]
भूकम्पीय डेटा याजड़त्वाघूर्ण की जानकारी के बगैर शुक्र की आंतरिक संरचना और भू-रसायन के बारे में थोड़ी ही प्रत्यक्ष जानकारी उपलब्ध है।[40] शुक्र और पृथ्वी के बीच आकार और घनत्व में समानता बताती है, वें समान आंतरिक संरचना साझा करती है: एक कोर, एक मेंटल और एक क्रस्ट। पृथ्वी पर की ही तरह शुक्र का कोर कम से कम आंशिक रूप से तरल है क्योंकि इन दो ग्रहों के ठंडे होने की दर लगभग एक समान रही है।[41] शुक्र का थोड़ा छोटा आकार बताता है, इसके गहरे आंतरिक भाग में दबाव पृथ्वी से काफी कम हैं। इन दो ग्रहों के बीच प्रमुख अंतर है, शुक्र पर प्लेट टेक्टोनिक्स के लिए प्रमाण का अभाव, संभवतः क्योंकि इसकी परत कम चिपचिपा बनाने के लिए बिना पानी के अपहरण के लिए बहुत मजबूत है। इसके परिणामस्वरूप ग्रह से गर्मी की कमी कम हो जाती है, इसे ठंडा करने से रोकती है और आंतरिक रूप से जेनरेट किए गए चुंबकीय क्षेत्र की कमी के लिए संभावित स्पष्टीकरण प्रदान किया जाता है।[42]बावजुद, शुक्र प्रमुख पुनर्सतहीकरण घटनाओं में अपनी आंतरिक ऊष्मा बीच बीच में खो सकता हैं।[35]
1979 मेंपायनियर वीनस ऑर्बिटर से पराबैंगनी प्रेक्षणों से प्रगट शुक्र की वायुमंडलीय मेघाकृति पृथ्वी के वायुमंडल के अनुरुप एक सरल गैस मिश्रण का सिंथेटिक स्टिक अवशोषण स्पेक्ट्रम शुक्र की वायुमंडलीय संरचना HITRAN डेटा पर आधारित है,[43] जो वेब प्रणाली पर Hitran का उपयोग कर बनाई गई है।[44] हरा रंग-जल वाष्प, लाल रंग-कार्बन डाइऑक्साइड, WN - तरंग संख्या (चेतावनी: अन्य रंगों के भिन्न अर्थ है, निम्नतरंग दैर्घ्य दांये पर और उच्च बाईं तरफ है।)
शुक्र का वायुमंडल अत्यंत घना है, जो मुख्य रूप सेकार्बन डाइऑक्साइड औरनाइट्रोजन की एक छोटी मात्रा से मिलकर बना है। वायुमंडलीय द्रव्यमान पृथ्वी पर के वायुमंडल की तुलना मे 93 गुना है, जबकि ग्रह के सतह पर का दबाव पृथ्वी पर के सतही दबाव की तुलना मे 92 गुना है- यह दबाव पृथ्वी के महासागरों की एक किलोमीटर करीब की गहराई पर पाये जाने वाले दबाव के बराबर है। सतह पर घनत्व 65 किलो/घनमीटर है (पानी की तुलना में 6.5%) | यहां का CO2-बहुल वायुमंडल,सल्फर डाइऑक्साइड के घने बादलों के साथ-साथ, सौर मंडल का सबसे शक्तिशालीग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करता है और कम से कम 462 °C (864 °F) का सतही तापमान पैदा करता है।[7][45] यह शुक्र की सतह कोबुध की तुलना में ज्यादा तप्त बनाता है। बुध का न्यूनतम सतही तापमान −220°C और अधिकतम सतही तापमान 420°C है।[46] शुक्र ग्रह सूर्य से दोगुनी के करीब दूरी पर होने के बावजुद बुध सौरविकिरण (irradiance) का केवल 25% प्राप्त करता है। प्रायः शुक्र की सतह नारकीय रूप में वर्णित है।[47]यह तापमान नसबंदी प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जाने वाले तापमान से भी अधिक है।(See also:Hot air oven)
अध्ययनों ने बताया है कि शुक्र का वातावरण हाल की तुलना में अरबों साल पहले पृथ्वी की तरह बहुत ज्यादा था और वहां सतह पर तरल पानी की पर्याप्त मात्रा रही हो सकती है। लेकिन, 60 करोड से लेकर कई अरब वर्षों तक की अवधि के बाद,[48] मूल पानी के वाष्पीकरण के कारण एक दौडता-भागता ग्रीनहाउस प्रभाव हुआ, जिसने वहां के वातावरण में एक महत्वपूर्ण स्तर की ग्रीन हाउस गैसों को पैदा किया |[49] हालांकि ग्रह पर सतही हालात किसी भी पृथ्वी-सदृश्य जीवन के लिए लम्बी मेहमान नवाजी योग्य नहीं है, जो इस घटना के पहले रहे हो सकते है। यह संभावना कि एक रहने योग्य दूसरी जगह निचले और मध्यम बादल परतों में मौजुद है, शुक्र अब भी दौड से बाहर नहीं हुआ है।[50]
तापीय जड़ता और निचले वायुमंडल में हवाओं द्वारा उष्मा के हस्तांतरण का मतलब है कि शुक्र की सतह के तापमान रात और दिन के पक्षों के बीच काफी भिन्न नहीं होते है, बावजुद इसके कि ग्रह का घूर्णन अत्यधिक धीमा है। सतह पर हवाएं धीमी हैं, प्रति घंटे कुछ ही किलोमीटर की दूरी चलती है, लेकिन शुक्र के सतह पर वातावरण के उच्च घनत्व की वजह से, वे अवरोधों के खिलाफ उल्लेखनीय मात्रा का बल डालती है और सतह भर में धूल और छोटे पत्थरों का परिवहन करती है। यह अकेला ही इससे होकर मानवीय चहल कदमी के लिए मुश्किल खड़ी करता होगा, अन्यथा गर्मी, दबाव और ऑक्सीजन की कमी कोई समस्या नहीं थी।[51]
सघन CO2 परत के ऊपर घने बादल हैं जो मुख्य रूप सेसल्फर डाइऑक्साइड औरसल्फ्यूरिक अम्ल की बूंदों से मिलकर बने है।[52][53] ये बादल लगभग 90% सूर्य प्रकाश को परावर्तित व बिखेरते है जो कि वापस अंतरिक्ष में उन पर गिरता है और शुक्र की सतह के दृश्य प्रेक्षण को रोकते है। बादलों के स्थायी आवरण का अर्थ है कि भले ही शुक्र ग्रह पृथ्वी की तुलना में सूर्य से नजदीक है, पर शुक्र की सतह अच्छी तरह से तपी नहीं है। बादलों के शीर्ष पर की 300 किमी/घंटा की शक्तिशाली हवाएं हर चार से पांच पृथ्वी दिवसो में ग्रह का चक्कर लगाती है।[54] शुक्र की हवाएं उसकी घूर्णन के 60 गुने तक गतिशील है, जबकि पृथ्वी की सबसे तेज हवाएं घूर्णन गति की केवल 10% से 20% हैं।[55]
शुक्र की सतह प्रभावी ढंग से समतापीय है, यह न सिर्फ दिन और रात के बीच बल्कि भूमध्य रेखा और ध्रुवों के मध्य भी एक स्थिर तापमान बनाए रखता है।[2][56] ग्रह का अल्पअक्षीय झुकाव (कम से कम तीन डिग्री, तुलना के लिए पृथ्वी का 23 डिग्री) भी मौसमी तापमान विविधता को कम करता है।[57] तापमान में उल्लेखनीय भिन्नता केवल ऊंचाई के साथ मिलती है। 1995 में, मैगेलन जांच ने उच्चतम पर्वत शिखर के शीर्ष पर एक अत्यधिक प्रतिबिंबित पदार्थ का चित्रण किया जो स्थलीय बर्फ के साथ एक मजबूत समानता थी। यह पदार्थ तर्कसंगत रूप से एक समान प्रक्रिया से बर्फ तक बना है, यद्यपि बहुत अधिक तापमान पर। सतह पर घुलनशील करने के लिए बहुत अस्थिर, यह गैस के रूप में उच्च ऊंचाई को ठंडा करने के लिए गुलाब, जहां यह वर्षा के रूप में गिर गया। इस पदार्थ की पहचान निश्चितता के साथ ज्ञात नहीं है, लेकिन अटकलें मौलिक टेल्यूरियम से सल्फाइड (गैलेना) तक ले जाती हैं।[58]
शुक्र के बादल पृथ्वी पर के बादलों की ही तरहबिजली पैदा करने में सक्षम हैं।[59] बिजली की मौजुदगी विवादित रही है जब से सोवियत वेनेरा प्रोब द्वारा प्रथम संदेहास्पद बौछार का पता लगाया गया था। 2006-07 मेंवीनस एक्सप्रेस ने स्पष्ट रूप सेव्हिस्टलर मोड तरंगों का पता लगाया, जो बिजली का चिन्हक है। उनकीआंतरायिक उपस्थिति मौसम गतिविधि से जुड़े एक पैटर्न को इंगित करता है। बिजली की दर पृथ्वी पर की तुलना में कम से कम आधी है।[59] 2007 में वीनस एक्सप्रेस प्रोब ने खोज की कि एक विशाल दोहरा वायुमंडलीय भंवर ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद है।[60][61]
2011 में वीनस एक्सप्रेस प्रोब द्वारा एक अन्य खोज की गई और वह है, शुक्र के वातावरण की ऊंचाई में एक ओजोन परत मौजूद है।[62]
29 जनवरी 2013 कोईएसए के वैज्ञानिकों ने बताया कि शुक्र ग्रह काआयनमंडल बाहर की ओर बहता है, जो इस मायने में समान है "इसी तरह की परिस्थितियों में एकधूमकेतु से आयन पूंछ की बौछार होती देखी गई"।"[63][64]
स्थलीय ग्रहों के आकार की तुलना (बाएं से दाएं) बुध, शुक्र,पृथ्वी और मंगल वास्तविक रंगो में
1967 मेंवेनेरा 4 ने शुक्र के चुंबकीय क्षेत्र को पृथ्वी की तुलना में बहुत कमजोर पाया। यह चुंबकीय क्षेत्र एक आंतरिक डाइनेमो, पृथ्वी के अंदरुनीकोर की तरह, की बजायआयनमंडल औरसौर वायु के बीच एक अंतःक्रिया द्वारा प्रेरित है।[65][66] शुक्र का छोटा साप्रेरित चुंबकीय क्षेत्र वायुमंडल को ब्रह्मांडीय विकिरण के खिलाफ नगण्य सुरक्षा प्रदान करता है। यह विकिरण बादल दर बादल बिजली निर्वहन का परिणाम हो सकता है।[67]
आकार में पृथ्वी के बराबर होने के बावजुद शुक्र पर एक आंतरिक चुंबकीय क्षेत्र की कमी होना आश्चर्य की बात थी | यह भी उम्मीद थी कि इसका कोर एक डाइनेमो रखता है। एक डाइनेमो को तीन चीजों की जरुरत होती है: एकसुचालक तरल, घूर्णन औरसंवहन। कोर को विद्युत प्रवाहकीय होना माना गया है, जबकि इसके घूर्णन को प्रायः बहुत ज्यादा धीमी गति का होना माना गया है, सिमुलेशन दिखाते है कि एक डाइनेमो निर्माण के लिए यह पर्याप्त है।[68][69] इसका तात्पर्य है, डाइनेमो गुम है क्योंकि शुक्र के कोर में संवहन की कमी है। पृथ्वी पर, संवहन कोर के बाहरी परत मे पाया जाता है क्योंकि तली की तरल परत शीर्ष की तुलना में बहुत ज्यादा तप्त है। शुक्र पर, एक वैश्विक पुनर्सतहीकरण घटना नेप्लेट विवर्तनिकी को बंद कर दिया हो सकता है और यह भूपटल से होकर उष्मा प्रवाह के घटाव का कारण बना। इसने मेंटल तापमान को बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे कोर के बाहर उष्मा प्रवाह बढ़ गया। नतीजतन, एक चुंबकीय क्षेत्र चलाने के लिए कोई आंतरिक भूडाइनेमो उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय, कोर से निकलने वाली तापीय ऊर्जा भूपटल को दोबारा गर्म करने के लिए बार-बार इस्तेमाल हुइ है।[70]
एक संभावना यह कि शुक्र का कोई ठोस भीतरी कोर नहीं है,[71] या इसका कोर वर्तमान में ठंडा नहीं है, इसलिए कोर का पूरा तरल हिस्सा लगभग एक ही तापमान पर है। एक और संभावना कि इसका कोर पहले से ही पूरी तरह जम गया है। कोर की अवस्थागंधक के सान्द्रण पर अत्यधिक निर्भर है, जो फिलहाल अज्ञात है।[70]
शुक्र के इर्दगिर्द दुर्बल चुंबकीय आवरण का मतलब हैसौर वायु ग्रह के बाह्य वायुमंडल के साथ सीधे संपर्क करती है। यहां, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के आयन पराबैंगनी विकिरण से निकले तटस्थ अणुओं के वियोजन द्वारा बनाये गये है। सौर वायु फिर ऊर्जा की आपूर्ति करती है जो इनमें से कुछ आयनों को ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र से पलायन के लिए पर्याप्त वेग देती है। इस क्षरण प्रक्रिया का परिणाम निम्न-द्रव्यमान हाइड्रोजन, हीलियम और ऑक्सीजन आयनों की हानि के रूप मे होती है, जबकि उच्च-द्रव्यमान अणुओं, जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड, को उसी तरह से ज्यादा बनाये रखने के लिए होती है। सौर वायु द्वारा वायुमंडलीय क्षरण ग्रह के गठन के बाद के अरबों वर्षों के दरम्यान जल के खोने का शायद सबसे बड़ा कारण बना। इस क्षरण ने उपरि वायुमंडल में उच्च-द्रव्यमानड्यूटेरियम से निम्न-द्रव्यमान हाइड्रोजन के अनुपात को निचले वायुमंडल में अनुपात का 150 गुना बढ़ा दिया है।[72]
शुक्र की कक्षा (पीली) औरपृथ्वी की कक्षा (नीली) की आपस मे तुलना I
शुक्र करीबन 0.72 एयू (10,80,00,000किमी; 6,70,00,000मील) की एक औसत दूरी परसूर्य की परिक्रमा करता है और हर 224.65 दिवस को एक चक्कर पूरा करता है। यद्यपि सभी ग्रहीय कक्षाएं दीर्घवृत्तीय हैं, शुक्र की कक्षा 0.01 से कम की एक विकेन्द्रता के साथ, वृत्ताकार के ज्यादा करीब है।[2] जब शुक्र ग्रह, पृथ्वी और सूर्य के बीच स्थित होता है, यह स्थितिअवर संयोजन कहलाती है, जो उसकी पहुंच को पृथ्वी से निकटतम बनाती है, अन्य ग्रह 4.1 करोड की औसत दूरी पर है।[2] शुक्र औसतन हर 584 दिनों में अवर संयोजन पर पहुँचता है।[2] पृथ्वी की कक्षा की घटती विकेन्द्रता के कारण, यह न्यूनतम दूरी दसीयों हजारों वर्ष उपरांत सर्वाधिक हो जाएगी। सन् 1 से लेकर 5383 तक, 4 करोड किमी से कम की 526 पहुंच है, फिर लगभग 60,158 वर्षों तक कोई पहुंच नहीं है।[73] सर्वाधिक विकेन्द्रता की अवधि के दौरान, शुक्र करीब से करीब 3.82 करोड किमी तक आ सकता है।[2]
सौरमंडल के सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा एक वामावर्त दिशा में करते है, जैसा कि सूर्य के उत्तरी ध्रुव के उपर से देखा गया। अधिकांशग्रह अपने अक्ष पर भी एकवामावर्त दिशा में घूमते है, लेकिन शुक्र हर 243 पृथ्वी दिवसों में एक बारदक्षिणावर्त ( "प्रतिगामी" घूर्णन कहा जाता है) घूमता है, यह किसी भी ग्रह की सर्वाधिक धीमीघूर्णन अवधि है। इस प्रकार एक शुक्र नाक्षत्र दिवस एक शुक्र वर्ष (243 बनाम 224.7 पृथ्वी दिवस) से लंबे समय तक रहता है। शुक्र की भूमध्य रेखा 6.5 किमी/घंटा की गति से घुमती है, जबकि पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर घूर्णन लगभग 1,670 किमी/घंटा है।[74] शुक्र का घूर्णन 6.5 मिनट/शुक्र नाक्षत्र दिवस तक धीमा हो गया है, जब से मैगलन अंतरिक्ष यान ने 16 साल पहले उसका दौरा किया है।[75] प्रतिगामी घूर्णन के कारण, शुक्र पर एकसौर दिवस की लंबाई इसके नाक्षत्र दिवस की तुलना में काफी कम है, जो कि 116.75 पृथ्वी दिवस है (यह शुक्र सौर दिवस को बुध के 176 पृथ्वी दिवसों की तुलना में छोटा बनाता है)। शुक्र का एक वर्ष लगभग 1.92 शुक्र सौर दिवस लंबा है।[8] शुक्र की धरती से एक प्रेक्षक के लिए, सूर्य पश्चिम में उदित और पूर्व में अस्त होगा।[8]
शुक्र ग्रह, विभिन्न घूर्णन अवधि और झुकाव के साथ एकसौर नीहारिका से गठित हुआ हो सकता है। सघन वायुमंडल पर ज्वारीय प्रभाव और ग्रहीय उद्विग्नता द्वारा प्रेरित अस्तव्यस्त घूर्णन बदलाव के कारण वह वहां से अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुंचा है। यह बदलाव जो कि अरबों वर्षों की क्रियाविधि उपरांत घटित हुआ होगा। शुक्र की घूर्णन अवधि सम्भवतः एक संतुलन की अवस्था को दर्शाती है जो, सूर्य के गुरुत्वाकर्षण की ओर से ज्वारीय जकड़न जिसकी प्रवृत्ति घूर्णन को धीमा करने की होती है और घने शुक्र वायुमंडल के सौर तापन द्वारा बनाई गई एक वायुमंडलीय ज्वार, के मध्य बनती है।[76][77] शुक्र की कक्षा और उसकी घूर्णन अवधि के बीच के 584-दिवसीय औसत अंतराल का एक रोचक पहलू यह है कि शुक्र की पृथ्वी से उत्तरोत्तर नजदीकी पहुंच करीब-करीब पांच शुक्र सौर दिवसो के ठीक बराबर है।[78] तथापि, पृथ्वी के साथ एक घूर्णन-कक्षीय अनुनाद की परिकल्पना छूट गई है।[79]
शुक्र का कोई प्राकृतिक उपग्रह नहीं है,[80] हालांकिक्षुद्रग्रह2002 VE68 वर्तमान में इसके साथ एक अर्ध कक्षीय संबंध रखता है।[81][82] इसअर्ध उपग्रह के अलावा, इसके दो अन्य अस्थायीसह कक्षीय 2001 CK32 और 2012 XE33 है। 17 वीं सदी में गियोवन्नी कैसिनी ने शुक्र की परिक्रमा कर रहे चंद्रमा की सूचना दी जोनेइथ से नामित किया गया था | अगले 200 वर्षों के उपरांत अनेकों द्रष्टव्यों की सूचना दी गई | परन्तु अधिकांश को आसपास के सितारों का होना निर्धारित किया गया था।कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान में,एलेक्स एलमी वडेविड स्टीवेन्सन के पूर्व सौर प्रणाली पर 2006 के मॉडलों के अध्ययन बताते है कि शुक्र का हमारे जैसा कम से कम एक चांद था जिसे अरबो साल पहले एक बड़ी टकराव की घटना ने बनाया था।[83]अध्ययन के मुताबिक करीब एक करोड़ साल बाद एक अन्य टक्कर ने ग्रह की घूर्णन दिशा उलट दी। इसने शुक्र के चंद्रमा के घुमाव या कक्षा को धीरे धीरे अंदर की ओर सिकुड़ने के लिए प्रेरित किया जब तक कि वह शुक्र के साथ टकराकर उसमें विलीन नहीं हो गया।[84] यदि बाद की टक्करों ने चन्द्रमा बनाये है तो वें भी उसी तरह से खींच लिए गए। उपग्रहों के अभाव लिए एक वैकल्पिक व्याख्या शक्तिशाली सौर ज्वार का प्रभाव है जो भीतरी स्थलीय ग्रहों की परिक्रमा कर रहे बड़े उपग्रहों को अस्थिर कर सकते है।[80]
शुक्र के चरण और इसके स्पष्ट व्यास का विकासशुक्र सदा हमारे सौरमंडल से बाहर के सबसे चमकीले तारों से भी ज्यादा चमकदार रहा है, जैसा प्रशांत महासागर के ऊपर यहां देखा जा सका है I
शुक्र किसी भी तारे (सूर्य के अलावा) की तुलना में हमेशा उज्जवल है। सर्वाधिक कांतिमान,सापेक्ष कांतिमान −4.9,[10] अर्द्धचंद्र चरण के दौरान होती है जब यह पृथ्वी के निकट होता है। शुक्र करीब −3 परिमाण तक मंद पड़ जाता है जब यह सूर्य द्वारा छुपा लिया जाता है।[9] यह ग्रह दोपहर के साफ आसमान मे काफी उज्जवल दिखाई देता है,[85] और आसानी से देखा जा सकता है जब सूर्य क्षितिज पर नीचा हो। एकअवर ग्रह के रूप में, यह हमेशा सूर्य से लगभग 47° के भीतर होता है।[11]
सूर्य की परिक्रमा करते हुए शुक्र प्रत्येक 584 दिवसों पर पृथ्वी को पार कर जाता है।[2] जैसा कि यह दिखाई देता है, यह सूर्यास्त के बाद "सांझ का तारा" से लेकर सूर्योदय से पहले "भोर का तारा" तक बदल जाता है। एक अन्य अवर ग्रहबुध काप्रसरकोण मात्र 28° के अधिकतम तक पहुँचता है और गोधूलि में प्रायः मुश्किल से पहचाना जाता है, जबकि शुक्र को अपनी अधिकतम कांति पर चुक जाना कठिन है। इसके अधिक से अधिक अधिकतम प्रसरकोण का मतलब है यह सूर्यास्त के एकदम बाद तक अंधेरे आसमान में नजर आता है। आकाश में एक चमकदार बिंदु सदृश्य वस्तु के रूप में शुक्र को एक "अज्ञात उड़न तस्तरी" मान लेने की सहज गलत बयानी हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपतिजिमी कार्टर ने 1969 में एकउड़न तस्तरी देखे जाने की सूचना दी, जिसके विश्लेषण ने बाद में ग्रह होने की संभावना का सुझाव दिया था | अनगिनत अन्य लोगों ने शुक्र को असाधारण मानने की भूल की है।[86]
जैसे ही शुक्र की अपनी कक्षा के इर्दगिर्द हलचल होती है, दूरबीन दृश्यावली में यहचंद्रमा की तरहकलाओं का प्रदर्शन करता है: शुक्र की कलाओं में, ग्रह एक छोटी सी "पूर्ण" छवि प्रस्तुत करता है जब यह सूर्य के विपरीत दिशा में होता है, जब यह सूर्य से अधिकतम कोण पर होता है एक बड़ी "चतुर्थांस कला" प्रदर्शित करता है, एवं रत्रि आकाश में अपनी अधिकतम चमक पर होता है, तथा जैसे ही यह पृथ्वी और सूर्य के मध्य समीपस्थ कहीं आसपास आता है दूरबीन दृश्यावली में एक बहुत बड़ा "पतला अर्द्धचंद्र" प्रस्तुत करता है। शुक्र जब पृथ्वी और सूर्य के बीचोबीच होता है, अपने सबसे बड़े आकार पर होता है और अपनी "नव कला" प्रस्तुत करता है। इसके वायुमंडल को ग्रह के चारों ओर के अपवर्तित प्रकाश के प्रभामंडल द्वारा एक दूरबीन में देखा जा सकता हैं।[11]
शुक्र की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के सापेक्ष थोड़ी झुकी हुई है; इसलिए, जब यह ग्रह पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है, आमतौर पर सूर्य के मुखाकृति को पार नहीं करता।शुक्र पारगमन करना तब पाया जाता है जब ग्रह का अवर संयोजन पृथ्वी के कक्षीय तल में उपस्थिति के साथ मेल खाता है। शुक्र के पारगमन 243 साल के चक्रों में होते हैं। पारगमन की वर्तमान पद्धति मे, पहले दो पारगमन आठ वर्षों के अंतराल में होते है, फिर करीब 105.5 वर्षीय या 121.5 वर्षीय लंबा विराम और फिर से वहीं आठ वर्षीय अंतराल के नए पारगमन जोड़ो का दौर शूरू होता है। इस स्वरुप को सबसे पहले 1639 में अंग्रेज खगोलविद्यिर्मयाह होरोक्स ने खोजा था।[87]
नवीनतम जोड़ा 8 जून,2004 और 5-6 जून 2012 को था। पारगमन का अनेकों ऑनलाइन आउटलेट्स से सीधे अथवा उचित उपकरण और परिस्थितियों के साथ स्थानीय रूप से देखा जाना हो सका।[88]
पारगमन की पूर्ववर्ती जोड़ी दिसंबर 1874 और दिसंबर 1882 में हुई; आगामी जोड़ी दिसंबर 2117 और दिसंबर 2125 में घटित होगी।[89] ऐतिहासिक रूप से, शुक्र के पारगमन महत्वपूर्ण थे, क्योंकि उन्होने खगोलविदों कोखगोलीय इकाई के आकार के सीधे निर्धारण करने की अनुमति दी है, साथ ही सौरमंडल के आकार की भी, जैसा कि 1639 में होरोक्स के द्वारा देखा गया[90]कैप्टन कुक की ऑस्ट्रेलिया की पूर्वी तट की खोज तब संभव हो पाई जब वें शुक्र पारगमन के प्रेक्षण के लिए पीछा करते हुए जलयात्रा कर 1768 मेंताहिती आ गए।[91][92]
तथाकथितभस्मवर्ण प्रकाश लंबे समय से चला आ रहा शुक्र प्रेक्षणों का एक रहस्य है। भस्मवर्ण प्रकाश शुक्र के अंधकार पक्ष की एक सुक्ष्म रोशनी है और नजर आती है जब ग्रह अर्द्ध चंद्राकार चरण में होता है। इस प्रकाश को सर्वप्रथम देखने का दावा बहुत पहले 1643 में हुआ था, परंतु रोशनी के अस्तित्व की भरोसेमंद पुष्टि कभी नहीं हो पाई। पर्यवेक्षकों ने अनुमान लगाया है, यह शुक्र के वायुमंडल में बिजली की गतिविधि से निकला परिणाम हो सकता है, लेकिन यह भ्रामक हो सकता है। हो सकता है यह एक उज्ज्वल, अर्द्ध चंद्राकार आकार की वस्तु देखने के भ्रम का नतीजा हो।[93]
शुक्र ग्रह को "सुबह के तारे" और "शाम के तारे" दोनों ही रूपों में प्राचीन सभ्यताओं ने जान लिया था। नाम से ही पूर्व समझ जाहिर होती है कि वें दो अलग-अलग वस्तुएं थी |अम्मीसाडुका की शुक्र पटलिका, दिनांकित 1581 ईपू, यूनानी समझ दिखाती है कि दोनों वस्तु एक ही थी। इस पटलिका में शुक्र को "आकाश की उज्ज्वल रानी" के रूप में निर्दिष्ट किया गया है और विस्तृत प्रेक्षणों के साथ इस दृष्टिकोण का समर्थन किया जा सका है।[94] छठी शताब्दी ईसा पूर्व मेंपाइथागोरस के समय तक, यूनानियों की अवधारणा,फोस्फोरस औरहेस्पेरस, के रूप में दो अलग-अलग सितारों की थी।[95] रोमनों ने शुक्र के सुबह की पहलू कोलूसिफ़ेर के रूप में और शाम के पहलू कोवेस्पेर के रूप में नामित किया है।
गैलीलियो की खोज कि शुक्र कलाओं के प्रदर्शन (जब हमारे आसमान में सूर्य के करीब रहता है) ने साबित किया है कि वहसूर्य की परिक्रमा करता है, न किपृथ्वी की।
17 वीं सदी की शुरुआत में जब इतालवी भौतिक विज्ञानीगैलीलियो गैलीली ने ग्रह का प्रथम अवलोकन किया, उन्होने उसे चंद्रमा की तरहकलाओं को दिखाया हुआ पाया, अर्धचंद्र से उन्नतोदर से लेकर पूर्णचंद्र तक और ठीक इसके उलट। जब यह सूर्य से सर्वाधिक दूर होता है अपना अर्धचंद्र रुप दिखाता है और जब सूर्य के सबसे नजदीक होता है यह अर्द्ध चंद्राकार या पूर्णचंद्र की तरह दिखता है। यह संभव हो सका केवल यदि शुक्र ने सूर्य की परिक्रमा की और यह टॉलेमी केभूकेन्द्रीय मॉडल, जिसमें सौरमंडल संकेंद्रित था और पृथ्वी केंद्र पर थी, के स्पष्ट खंडन करने के प्रथम अवलोकनों में से था।[97]
शुक्र के वायुमंडल की खोज 1761 में रूसीबहुश्रुतमिखाइल लोमोनोसोव द्वारा हुई थी।[98][99] शुक्र के वायुमंडल का अवलोकन 1790 में जर्मन खगोलशास्त्री योहान श्रोटर द्वारा हुआ था। श्रॉटर ने पाया कि ग्रह जब एक पतला अर्द्धचंद्र था, कटोरी 180° से अधिक तक विस्तारित हुई। उन्होने सही अनुमान लगाया कि यह घने वातावरण में सूर्य प्रकाश के बिखरने की वजह से था। बाद में, जब ग्रह अवर संयोजन पर था, अमेरिकी खगोलशास्त्रीचेस्टर स्मिथ लीमन ने इसके अंधकार तरफ वाले हिस्से के इर्दगिर्द एक पूर्ण छल्ले का निरिक्षण किया और इसने वायुमंडल के लिए प्रमाण प्रदान किये।[100] The atmosphere complicated efforts to determine a rotation period for the planet, and observers such as Italian-born astronomerGiovanni Cassini and Schröter incorrectly estimated periods of about 24 hours from the motions of markings on the planet's apparent surface.[101]
20 वीं सदी तक शुक्र के बारे में थोड़ी बहुत और खोज हुई थी। इसकी करीब-करीब आकृतिहीन डीस्क ने कोई सुराग नहीं दिया कि इसकी सतह आखिर किस तरह की हो सकती है। इसके और अधिक रहस्यों का पर्दाफास,स्पेक्ट्रोस्कोपी,रडार औरपराबैंगनी प्रेक्षणों के विकास के साथ ही हुआ। पहले पराबैंगनी प्रेक्षण 1920 के दशक में किए गए जब फ्रैंक ई रॉस ने पाया कि पराबैंगनी तस्वीरों ने काफी विस्तृत ब्योरा दिखाया जो दृश्य औरअवरक्त विकिरण में अनुपस्थित था। उन्होने सुझाव दिया ऐसा निचले पीले वातावरण के साथ उसके उपर केपक्षाभ मेघ के अत्यधिक घनेपन की वजह से था।[102]
1900 के दशक में स्पेक्ट्रोस्कोपी प्रेक्षणों ने शुक्र के घूर्णन के बारे में पहला सुराग दिया। वेस्टो स्लिफर ने शुक्र से निकले प्रकाश के डॉप्लर शिफ्ट को मापने की कोशिश की, लेकिन पाया कि वह किसी भी घूर्णन का पता नहीं लगा सके। उन्होने अनुमान लगाया ग्रह की एक बहुत लंबी घूर्णन अवधि होनी चाहिए।[103] 1950 के दशक में बाद के कार्य ने दिखाया कि घूर्णन प्रतिगामी था। शुक्र के रडार प्रेक्षण सर्वप्रथम 1960 के दशक में किए गए थे, इसने घूर्णन अवधि की पहली माप प्रदान की, जो आधुनिक मान के करीब थी।[104]
1970 के दशक में रडार प्रेक्षणों ने पहली बार शुक्र की सतह को विस्तृत रूप से उजागर किया।एरेसिबो वेधशाला पर 300 मीटर की रेडियो दूरबीन का प्रयोग कर ग्रह पर रेडियो तरंगों के स्पंदन प्रसारित किए गए और गूँज ने अल्फा और बीटा क्षेत्रों से नामित दो अत्यधिक परावर्तक क्षेत्रों का पता लगाया। प्रेक्षणों ने पर्वतों के लिए उत्तरदायी ठहराये गए एक उज्ज्वल क्षेत्र भी पता लगाया, इसे मैक्सवेल मोंटेस कहा गया था।[105] शुक्र पर अब अकेली केवल यह तीन ही भूआकृतियां है जिसके महिला नाम नहीं है।[106]
शुक्र के लिए, वैसे ही किसी भी अन्य ग्रह के लिए, पहलारोबोटिकअन्तरिक्ष यान मिशन, 12 फ़रवरी 1961 कोवेनेरा 1 यान के प्रक्षेपण के साथ आरंभ हुआ। सोवियतवेनेरा कार्यक्रम अन्तर्गत यह पहला यान था। वेनेरा 1 ने मिशन के सातवे दिन सम्पर्क खो दिया, तब वह पृथ्वी से 20 लाख किमी की दूरी पर था।[107]
शुक्र के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका का अन्वेषण भी प्रक्षेपण स्थल पर ही मेरिनर 1 यान को खोने के साथ बुरे हाल मे शुरू हुआ। पर इसके अनुवर्तीमेरिनर 2 ने सफलता पाई। 14 दिसम्बर 1962 को अपने 109-दिवसीयकक्षांतरण के साथ ही यह शुक्र की धरती से 34,883 किमी उपर से गुजरने वाला दुनिया का पहला सफलतम अन्तर्ग्रहीय मिशन बन गया। इसके माइक्रोवेव औरइन्फ्रारेडरेडियोमीटर से पता चला कि शुक्र के सबसे उपरी बादल शांत थे जबकि पूर्व के भू-आधारित मापनो ने शुक्र की सतह के तापमान को अत्यधिक गर्म (425० सेन्टीग्रेड) होने की पुष्टि की है,[108]और आखिरकार यह उम्मीद भी खत्म हो गई कि यह ग्रह भूमि-आधारित जीवन का ठिकाना हो सकता है। मेरिनर 2 ने शुक्र के द्रव्यमान औरखगोलीय दूरी को और बेहतर प्राप्त किया, पर वहचुंबकीय क्षेत्र याविकिरण बेल्ट का पता लगाने में असमर्थ था।[109]
सोवियतवेनेरा 3 यान 1 मार्च 1966 को शुक्र पर उतरते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो गया | वायुमंडल मे प्रवेश करने वाली और किसी अन्य ग्रह की सतह से टकराने वाली यह पहली मानव-निर्मित वस्तु थी | भले ही इसकी संचार प्रणाली विफल हो गई पर इससे पहले यह तमाम ग्रहीय डेटा को प्रेषित करने में सक्षम था |[110] 18 अक्टूबर 1967 कोवेनेरा 4 ने सफलतापूर्वक वायुमंडल में प्रवेश किया और अनेको वैज्ञानिक उपकरणो को तैनात किया | वेनेरा 4 ने सतह के तापमान को मेरिनर 2 द्वारा मापे गए लगभग 500० C अधिकतम से भी ज्यादा बताया और वायुमंडल को लगभग 90 से 95% कार्बन डाइऑक्साइड का होना दिखाया | वेनेरा 4 के रचनाकारो द्वारा लगाये गए अनुमानो की तुलना मे शुक्र का वायुमंडल काफी घना था | इसने पैराशुट को उतरने के तयशुदा समय की तुलना मे धीमा कर दिया | इसका मतलब था सतह तक पहुंचने से पहले यान की बैटरियो का मन्द हो जाना | 93 मिनट तक अवतरण डेटा प्रेषित करने के बाद, 24.96 किमी की ऊचाई पर वेनेरा 4 की दबाव की अंतिम रीडिंग 18बार थी |[110]
एक दिन बाद 19 अक्टूबर 1967 कोमेरिनर 5 ने बादलों के शीर्ष से 4000 किमी से कम की ऊंचाई पर एक गुजारें का आयोजन किया | दरअसल मेरिनर 5 को मूल रूप से मंगल से जुडेमेरिनर 4 के लिए एक बैकअप के रूप में बनाया गया था | लेकिन जब मिशन सफल रहा तो यान को शुक्र मिशन के लिए तब्दील कर दिया गया | इसके उपकरणों के जोडे मेरिनर 2 पर की तुलना में अधिक संवेदनशील थे। विशेष रूप में इसकेरेडियो प्रच्छादन प्रयोग ने शुक्र के वायुमंडल की संरचना, दबाव और घनत्व के डेटा प्रेषित किए।[111] वेनेरा 4-मेरिनर 5 के संयुक्त डेटा का एक संयुक्त सोवियत-अमेरिकी विज्ञान दल द्वारा औपचारिक वार्तालाप की एक श्रृंखला में अगले वर्ष भर में विश्लेषण किया गया।[112] यह अंतरिक्ष सहयोग का एक प्रारंभिक उदाहरण है।[113]
वेनेरा 4 से सीखे सबक के बाद सोवियत यूनियन ने जनवरी 1969 को एक पांच दिवसीय अंतराल मे जुडवें यानवेनेरा 5 औरवेनेरा 6 को प्रक्षेपित किया। शुक्र से इनका सामना उसी साल एक दिन के आड़ में 16 व 17 मई को हुआ। यान के कुचलने की दाब सीमा को बढ़ाकर 25 बार तक सुदृढ़ किया गया और एक तेज अवतरण प्राप्त करने के लिए छोटे पैराशूट के साथ सुसज्जित किया गया। बाद के, शुक्र के हाल के वायुमंडलीय मॉडलों ने सतह के दबाव को 75 और 100 बार के बीच होने का सुझाव दिया था। इसलिए इन यानों के सतह पर जीवित बचे रहने की कोई उम्मीद नहीं थी | 50 मिनट के एक छोटे अंतराल का वायुमंडलीय डेटा प्रेषित करने के बाद दोंनों यान शुक्र के रात्रि पक्ष की सतह पर टकराने से पहले तकरीबन 20 किमी की ऊंचाई पर तबाह हो गए।[110]
वेनेरा 7 को ग्रह के सतह से निकले डेटा को वापस लाने के प्रयास के लिए पेश किया गया। इसे 180 बार के दबाव को बर्दाश्त करने में सक्षम एक मजबूत अवतरण मॉड्यूल के साथ निर्मित किया गया था। मॉड्यूल को प्रवेश से पहले ठंडा किया गया, साथ ही 35 मिनट के तेज अवतरण के लिए इसे एक विशेष रूप से समेटने वाले पैराशूट के साथ लैस किया गया था। 15 दिसम्बर 1970 को यह वायुमंडल में प्रवेश करता रहा, जबकि माना गया है पैराशूट आंशिक रूप से फट गया और प्रोब ने सतह को एक जोर की टक्कर मारी, पर घातक नहीं। शायद यह अपनी जगह पर झुक गया, कुछ कमजोर संकेत प्रेषित किये और 23 मिनट के लिए तापमान डेटा की आपूर्ति की जो किसी अन्य ग्रह की सतह से प्राप्त की गई पहलीदूरमिति थी।[110]
वेनेरा 8 के साथ वेनेरा कार्यक्रम जारी रहा | इसने 22 जुलाई 1972 को वायुमंडल मे प्रवेश करने के बाद 50 मीनट तक सतह से आंकडे भेजे |वेनेरा 9 ने 22 अक्टूबर 1975 को वायुमंडल में प्रवेश किया | जबकिवेनेरा 10 ने इसके ठीक तीन दिन बाद 25 अक्टूबर को वायुमंडल में प्रवेश कर शुक्र के परिदृश्य की पहली तस्वीरें भेजी | दोंनों ही यानों ने अपने अवतरण स्थलों के आसपास के तत्कालिक एकदम अलग ही परिदृश्य प्रस्तुत किये। वेनेरा 9 एक 20 डिग्री की ऐसी ढलान पर उतरा था जहां चारों ओर 30-40 सेमी के पत्थर बिखरे हुए थे | वेनेरा 10 ने मौसमी सामग्री सहितबेसाल्ट-प्रकार के बेतरतीब शिलाखंडों को दिखाया।[114]
इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने मेरिनर 10 को उसगुरुत्वीय गुलेल प्रक्षेपवक्र पर भेजा जिसकी राह शुक्र से होकरबुध ग्रह की ओर जाती थी। 5 फ़रवरी 1974 को मेरिनर 10 शुक्र से 5,790 किमी नजदीक से गुजरा और 4,000 से ज्यादा तस्वीरों के साथ वापस लौटा। इसने तब की सबसे अच्छी तस्वीरें हासिल की थी जिसमें दृश्य प्रकाश में शुक्र को लगभग आकृतिहीन दिखाया गया था। लेकिन पराबैंगनी प्रकाश ने बादलों को विस्तार मे दिखाया जिसे पृथ्वी-आधारित अवलोकनों ने पहले कभी नहीं दिखाया था।[115]
अमेरिकीपायनियर वीनस परियोजना ने दो अलग-अलग अभियानों को शामिल किया था।[116]पायनियर वीनस ऑर्बिटर को 4 दिसम्बर 1978 को शुक्र के आसपास की एक दीर्घवृत्ताकार कक्षा में स्थापित गया था। यह 13 साल से अधिक समय तक वहां बना रहा। इसनेरडार के साथ सतह की नाप-जोख की तथा वायुमंडल का अध्ययन किया।पायनियर वीनस मल्टीप्रोब ने कुल चार जांच-यान छोडे जिसने 9 दिसम्बर 1978 को वायुमंडल में प्रवेश किया और इसकी संरचना, हवाओं और ऊष्मा अपशिष्टों पर डेटा प्रेषित किया।[117]
अगले चार वर्षों में चार और वेनेरा लैंडर मिशनों ने अपनी जगह ले ली। जिनमें सेवेनेरा 11 औरवेनेरा 12 ने शुक्र केविद्युतीय तुफानों का पता लगाया[118] तथावेनेरा 13 औरवेनेरा 14, चार दिनों की आड में 1 और 5 मार्च 1982 को नीचे उतरे और सतह की पहली रंगीन तस्वीरें भेजी। सभी चार मिशनों को ऊपरी वायुमंडल में गतिरोध के लिए पैराशूट के साथ तैनात किया गया था, लेकिन 50 किमी की ऊंचाई पर उनको मुक्त कर दिया गया, क्योंकि शुक्र का घना निचला वायुमंडल बिना किसी अतिरिक्त साधन के आरामदायक अवतरण के लिए पर्याप्त घर्षण प्रदान करता है। वेनेरा 13 और 14 दोनों नेएक्स-रे प्रतिदीप्ति स्पेक्ट्रोमीटर के साथ ऑन-बोर्ड मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया और प्रविष्ठी टक्कर के साथ की मिट्टी की संपीडता मापने का प्रयास किया।[118] वेनेरा 14 ने, हालांकि, खुद से अलग हो चुके अपने ही कैमरें के लेंस का ढक्कन गिरा दिया और इसकीप्रविष्ठी मिट्टी को छुने मे विफल रही।[118] अक्टूबर 1983 में वेनेरा कार्यक्रम को बंद करने का तब समय आ गया, जबवेनेरा 15 औरवेनेरा 16 कोसिंथेटिक एपर्चर रडार के साथ शुक्र के इलाकों के मानचित्रण संचालन के लिए कक्षा में स्थापित किया गया।[119]
1985 में सोवियत संघ ने, शुक्र और उसी वर्ष अंदरुनी सौरमंडल से होकर गुजर रहेहैली धूमकेतु, से मिले अवसर का संयुक्त अभियानों से भरपूर फायदा उठाया। 11 और 15 जून 1985 को हैली के पडने वाले रास्ते परवेगा कार्यक्रम के दो अंतरिक्ष यानों से वेनेरा-शैली की एक-एक प्रविष्ठी गिराइ गई (जिसमें वेगा 1 आंशिक रूप से असफल रहा) और उपरी वायुमंडल के भीतर एक गुब्बारा-समर्थितएयरोबोट छोडा गया। गुब्बारों ने 53 किमी के करीब एक संतुलित ऊंचाई हासिल की, जहां दबाव और तापमान तुलनात्मक रूप से पृथ्वी की सतह पर जितना होता हैं। दोनों तकरीबन 46 घंटों के लिए परिचालन बने रहे और शुक्र के वातावरण को पूर्व धारणा से ज्यादा अशांत पाया | यहां अशांत वातावरण का तात्पर्य उच्च हवाओं और शक्तिशालीसंवहन कक्षों से है।[120][121]
शुक्र का मैगलन रडार स्थलाकृतिक नक्शा (कृत्रिम रंग)
प्रारंभिकभू-आधारित रडार ने सतह की एक बुनियादी समझ प्रदान की। पायनियर वीनस और वेनेरा ने बेहतर समाधान प्रदान किये।
संयुक्त राज्य अमेरिका के मैगलन यान को रडार से शुक्र के सतही मानचित्रण के लिए एक मिशन के साथ 4 मई 1989 कोप्रक्षेपित किया गया था।[27] अपने 4½ वर्षीय कार्यकलापों के दरम्यान प्राप्त की गई उच्च-स्पष्टता की तस्वीरें पूर्व के सभी नक्शों से काफी आगे निकल गई और यह अन्य ग्रहों की दृश्य प्रकाश तस्वीरों के बराबर थी। मैगलन ने रडार द्वारा शुक्र की 98% से अधिक भूमी को प्रतिबिंबित किया,[122] और उसके 95% गुरूत्व क्षेत्र को प्रतिचित्रित किया। 1994 में अपने मिशन के अंत में, मैगलन को शुक्र के घनत्व के अंदाज के लिए वायुमंडल में तबाह होने भेज दिया गया था।[123] शुक्र ग्रह को गैलिलियो और कैसिनी अंतरिक्ष यान द्वारा बाहरी ग्रहों के लिए अपने संबंधित मिशनों के गुजारे के दौरान अवलोकित किया गया है। लेकिन मैगलन एक दशक से भी ज्यादा तक के लिए शुक्र का अंतिम समर्पित मिशन बन गया।[124][125]
नासा के बुध केमेसेंजर मिशन ने अक्टूबर 2006 और जून 2007 में शुक्र के लिए दोफ्लाईबाई का आयोजन किया। धीमा करने के लिए इसके प्रक्षेपवक्र का मार्च 2011 में बुध की एक संभावित कक्षा में समावेश हुआ | मेसेंजर ने उन दोनों फ्लाईबाई पर वैज्ञानिक डेटा एकत्र किया।[126]
वीनस एक्सप्रेस प्रोबयूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया था। इसेस्टारसेम के माध्यम से प्राप्त एक रूसीसोयुज-फ्रेगट रॉकेट द्वारा 9 नवम्बर 2005 को प्रमोचित किया गया। 11 अप्रैल 2006 को इसने सफलतापूर्वक शुक्र के इर्दगिर्द एकध्रुवीय कक्षा ग्रहण की।[127] प्रोब शुक्र के वायुमंडल और बादलों का एक विस्तृत अध्ययन कर रहा है। इसमें ग्रह का प्लाज्मा वातावरण और सतही विशेषताओं, विशेष रूप से तापमान, के मानचित्रण शामिल है।वीनस एक्सप्रेस से उजागर प्राथमिक परिणामों से एक यह खोज है कि विशाल दोहरावायुमंडलीय भंवर ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद है।[127]
जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) ने एक शुक्र परिक्रमा यान अकात्सुकी (औपचारिक रूप से "Planet-C") को तैयार किया, जो 20 मई 2010 को प्रक्षेपित हुआ था, पर यह यान दिसंबर 2010 में कक्षा में प्रवेश करने में असफल रहा | आशाएं अभी बाकी है, क्योंकि यान सफलतापूर्वक सीतनिद्रा में है और छह साल में एक और प्रविष्टि का प्रयास कर सकता है। नियोजित जांच-पड़ताल नेबिजली की उपस्थिति की पुष्टि हेतू सतही प्रतिचित्रण के लिए डिजाइन किया गया एकइंफ्रारेड कैमरा और उपकरणों को, साथ ही वर्तमान भूपटल केज्वालामुखीकरण के अस्तित्व के निर्धारण को, शामिल किया है।[129]
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी को 2014 में बुध के लिए एकबेपिकोलम्बो नामक मिशन शुरू करने की उम्मीद है। 2020 में बुध की कक्षा तक पहुंचने से पहले यह शुक्र के लिए दोफ्लाईबाई का प्रदर्शन करेंगे |[130]
नासा ने अपनेन्यू फ्रंटियर्स कार्यक्रम के तहत, सतह की स्थिति का अध्ययन करने और regolith के तात्विक और खनिजीय लक्षणों की जांच करने के लिए, शुक्र ग्रह पर उतरने के लिए एकवीनस इन-सीटु एक्सप्लोरर नामक लैंडर मिशन का प्रस्ताव किया है। यह यान, सतह में ड्रिल करने और उन प्राचीन चट्टान के नमूनों के अध्ययन के लिए जो कठोर सतही परिस्थितियों से अपक्षीण नहीं हुए है, के लिए एक कोर सेम्पलर से लैस किया जाएगा। शुक्र का वायुमंडलीय और सतही अन्वेषी मिशन "सर्फेस एंड एटमोस्फेयर जियोकेमिकल एक्सप्लोरल" (SAGE) को 2009 न्यू फ्रंटियर चयन में एक मिशन अध्ययन उम्मीदवार के रूप में नासा द्वारा चुना गया था।[131] लेकिन मिशन को उड़ान के लिए नहीं चुना गया।
वेनेरा डी (रूसी: Венера-Д) अन्वेषी शुक्र के लिए एक प्रस्तावित रूसी अंतरिक्ष यान है। इसे शुक्र ग्रह के इर्दगिर्द रिमोट-सेंसिंग प्रेक्षण और एक लैंडर की तैनाती करने के अपने लक्ष्य के साथ 2016 के आसपास छोड़ा जाएगा। यह वेनेरा डिजाइन पर आधारित है। जो ग्रह की धरती पर लंबी अवधि तक जीवित रहने में सक्षम है। अन्य प्रस्तावित शुक्र अन्वेषण अवधारणाओं मेंरोवर,गुब्बारे औरएयरोबोट शामिल हैं।[132]
एक मानवयुक्त शुक्र फ्लाईबाई मिशन,अपोलो कार्यक्रम हार्डवेयर का प्रयोग कर, 1960 के दशक के अंत में प्रस्तावित किया गया था।[133] मिशन को अक्टूबर के अंत या नवंबर 1973 की शुरुआत में शुरु करने की योजना बनाई गई और तकरीबन एक वर्ष तक चलने वाली इस उड़ान में तीन लोगों को शुक्र के पास भेजने के लिए एकसेटर्न V रॉकेट का प्रयोग किया गया। करीब चार महीने बाद, अंतरिक्ष यान शुक्र की सतह से लगभग 5,000 किलोमीटर की दूरी से गुजर गया।[133]
यह शुक्र ग्रह को और अधिक बारीकी से अन्वेषण के लिए पृथ्वी से छोड़े गये प्रयासरत और सफल अंतरिक्ष यान की एक सूची है।[134] शुक्र को पृथ्वी की कक्षा में स्थितहबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा भी प्रतिबिंबित किया गया है। सूदूर दूरबीन प्रेक्षण शुक्र के बारे में जानकारी का एक अन्य स्रोत है।
नासा गोडार्ड स्पेस फ़्लाइट सेंटर द्वारा बनाई गई समय-सूची (2011 तक की)[134]
अपने बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण शुक्र की धरती पर उपनिवेश मौजूदा प्रौद्योगिकी के बस के बाहर है। हालांकि, सतह से लगभग पचास किलोमीटर ऊपर वायुमंडलीय दबाव और तापमान पृथ्वी की सतह पर जितना ही हैं। शुक्र के वायुमंडल में वायु (नाइट्रोजन औरऑक्सीजन) एक हल्की गैस होगी जो अधिकांशतःकार्बन डाइऑक्साइड है। इसने शुक्र के वायुमंडल में व्यापक "अस्थायी शहरों" के प्रस्तावों के लिए प्रेरित किया है।[135]एयरोस्टेट (हवा के गुब्बारे से भी हल्का) को प्रारंभिक अन्वेषण के लिए एवं अंतिम रूप से स्थायी बस्तियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।[135] कई इंजीनियरिंग चुनौतियों में से एक इन ऊंचाइयों पर सल्फ्यूरिक एसिड की खतरनाक मात्रा हैं।[135]
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