| जयन्त विष्णु नार्लीकर | |
|---|---|
| जन्म | 19 जुलाई 1938[1][2][3] कोल्हापुर |
| मौत | 20 मई 2025[4] पुणे[5] |
| आवास | पुणे |
| नागरिकता | भारत |
| शिक्षा | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय,[6]टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान |
| पेशा | खगोल विज्ञानी, विश्वविद्यालय शिक्षक |
| जीवनसाथी | मंगला नार्लीकर |
| माता-पिता | विष्णु वासुदेव नार्लीकर |
| पुरस्कार | महाराष्ट्र भूषण पुरुस्कार,कलिंग पुरस्कार,[7]शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी |
जयन्त विष्णु नार्लीकर (मराठी: जयन्त विष्णु नारळीकर; 19 जुलाई 1938 – 20 मई 2025) प्रसिद्ध भारतीयभौतिकीय वैज्ञानिक थे जिन्होंनेविज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिएअंग्रेजी,हिन्दी औरमराठी में अनेक पुस्तकें लिखी। वोब्रह्माण्ड केस्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ थे औरफ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी केहॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक थे। इनके द्वारा रचित एक आत्मकथाचार नगरातले माझे विश्व के लिये उन्हें सन् 2014 मेंसाहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[8]
जयन्त विष्णु नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 कोकोल्हापुर [महाराष्ट्र] में हुआ था। उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकरबनारस हिन्दू विश्वविद्यालय मेंगणित के अध्यापक थे तथा माँसंस्कृत की विदुषी थीं। नार्लीकर की प्रारम्भिक शिक्षा सेंट्रल हिन्दू बॉयज स्कूल (CHS)वाराणसी में हुई। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेने के बाद वेकैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये। उन्होने कैम्ब्रिज से गणित की उपाधि ली औरखगोल-शास्त्र एवंखगोल-भौतिकी में दक्षता प्राप्त की।
आजकल यह माना जाता है किब्रह्माण्ड की उत्पत्तिविशाल विस्फोट (Big Bang) के द्वारा हुई थी पर इसके साथ साथ ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में एक और सिद्धान्त प्रतिपादित है, जिसका नाम स्थायी अवस्था सिद्धान्त (Steady State Theory) है। इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल हैं। अपनेइंग्लैंड के प्रवास के दौरान, नार्लीकर ने इस सिद्धान्त पर फ्रेड हॉयल के साथ काम किया। इसके साथ ही उन्होंनेआइंस्टीन केआपेक्षिकता सिद्धान्त औरमाक सिद्धान्त को मिलाते हुए हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
सन् 1970 के दशक में नार्लीकर भारतवर्ष वापस लौट आये औरटाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान में कार्य करने लगे। सन् 1988 मेंविश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा उन्हेखगोलशास्त्र एवं खगोलभौतिकी अन्तरविश्वविद्यालय केन्द्र स्थापित करने का कार्य सौपा गया। उन्होने यहाँ से सन् 2003 में अवकाश ग्रहण कर लिया। अब वे वहीं प्रतिष्ठित अध्यापक हैं।
अपने जीवन के सफर में नार्लीकर को अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया। इन पुरस्कारों में प्रमुख हैं:स्मिथ पुरस्कार (1962),पद्म भूषण (1965),एडम्स पुरस्कार (1967),शांतिस्वरूप पुरस्कार (1979),इन्दिरा गांधी पुरस्कार (1990),कलिंग पुरस्कार (1996) औरपद्म विभूषण (2004),महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार (2010)।
नार्लीकर न केवल विज्ञान में किये कार्य के लिये जाने जाते थे परन्तु वे विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में भी पहचाने जाते थे। उन्हें अक्सर दूरदर्शन या रेडियो पर विज्ञान के लोकप्रिय भाषण देते हुए या फिर विज्ञान पर सवालों के जवाब देते हुए देखा एवं सुना जाता था।[9]
नार्लीकर ने विज्ञान से सम्बन्धित अकल्पित व कल्पित दोनों तरह की पुस्तकें लिखी। यह सारी पुस्तकेंअंग्रेजी,हिन्दी,मराठी के साथ कई अन्य भाषाओं में हैं।धूमकेतु नामक पुस्तक विज्ञान से सम्बन्धित की छोटी छोटी कल्पित कहानियों का संकलन है। यह हिन्दी में है। इसकी कुछ कहानियाँ मराठी से अनूदित हैं। यह कहानियां विज्ञान के अलग अलग सिद्धान्तों पर आधारित हैं।द रिटर्न ऑफ वामन (अंग्रेजी:The Return of Vaman, वामन की वापसी) उनके द्वारा लिखा हुआ विज्ञान का कल्पितउपन्यास है। इस उपन्यास की कहानी भविष्य की एक घटना पर आधारित है, जिसके ताने-बाने में भगवानविष्णु केवामन अवतार की कथा बहुत सुन्दर तरीके से समायोजित है। यह दोनो पुस्तकें सरल भाषा में, विज्ञान को सरलता से समझाते हुए लिखी।
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