बलभद्र प्रसाद दीक्षित 'पढ़ीस' (जन्म: 25 सितम्बर 1898; मृत्यु: 14 जुलाई 1942) एक आधुनिकअवधी भाषाकवि थे।[1][2]
पढ़ीस जी का जन्म १८९८ ई. मेंउत्तर प्रदेश केसीतापुर जिला में अम्बरपुर गाँव में हुआ था।खड़ी बोली,हिन्दी,अंग्रेजी औरउर्दू का ज्ञान होने के बाद भी पढ़ीस जी कविता अपनी मातृभाषा यानीअवधी में ही लिखते थे। पढ़ीस जी ने अपने आदर्शों के अनुसार सरकारी नौकरी छोड़कर जनता के बीच रहकर उसे शिक्षित करने, उसी की तरह खेतों में काम करने और गांव में रहते हुयेसाहित्य लिखने का निश्चय किया। पढी़सजी ने कुलीन ब्राह्मणों की रूढ़ियां तोड़कर हल की मुठिया पकड़ी। अछूत बालकों को घर पढ़ाने लगे। उनके दुबले-पतले मुख पर परिश्रम की थकान दिखने लगी पर आंखों में नई चमक आयी, वाणी में नया ओज आया।[3]
१९३३ ई. में पढ़ीस जी का काव्य संग्रह 'चकल्लस‘ प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका निरालाजी ने लिखी थी और साफ तौर पर कहा था कि ये संग्रह हिन्दी के तमाम सफल काव्यों से बढ़कर है। पढ़ीस जी की ग्रंथावलीउत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से आ चुकी है।
बलभद्र दीक्षित 'पढ़ीस ' का देहावसान सन् १९४२ में हुआ।
"दीक्षित के लिये बहुत सोचता हूं, मगर वह नस मेरी कट चुकी है जिसमें स्नेह सार्थक है। अपने आप दिन-रात जलन होती है। किसी से अपनी तरफ़ से प्राय: नहीं मिलता। मिल नहीं सकता। कोई आता है तो थोड़ी सी बातचीत। आनेवाला ऊब जाता है। मुझे भी बातचीत अच्छी नहीं लगती। कभी रात भर नींद नहीं आती। तम्बाकू छूटती नहीं। खोपड़ी भन्नाई रहती है। चित्रकूट में एक दफा बीमारी के समय छोड़ दिया था खाना, फिर आदत पड़ गयी।” |
| बलभद्र प्रसाद दीक्षित के देहावसान पर परम प्रिय मित्रसूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने लिखा। |
{{cite news}}:Check date values in:|date= (help)