वंग यारांगा याटिन (Tin) एक रासायनिकतत्त्व है।लैटिन में इसका नाम स्टैन्नम (Stannum) है जिससे इसकारासायनिक प्रतीकSn लिया गया है। यहआवर्त सारणी के चतुर्थ मुख्य समूह (main group) की एकधातु है। वंग के दस स्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११२, ११४, ११५, ११६, ११७, ११८, ११९, १२०, १२२ तथा १२४) प्राप्त हैं। इनके अतिरिक्त चार अन्यरेडियोऐक्टिवसमस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११३, १२१, १२३ और १२५) भी निर्मित हुए हैं। rb
वंग कीमिश्रधातु का उपयोग आज से ५,००० वर्ष पूर्व भी होता था। वंग धातु की बनी सबसे प्राचीन बोतलमिस्र की स्थित समाधि में पाई गई, जो लगभग ईसा से १,५०० वर्ष पूर्वकाल की है। वंग के अयस्क मिस्र में नहीं मिलते। इस कारण वहाँ यह धातु अवश्य ही बाहर से आई होगी। ईसा से लगभग ३०० वर्ष पूर्व इंग्लैंड में वंग के धातुकर्म के नमूने मिलते हैं। यहाँ वंग की खानें थीं। उस समय यह धातु रोम में जाती थी। दक्षिणी अमरीका के आदिवासियों को वंग की मिश्रधातुओं का ज्ञान था।
भारत मेंसिंधु घाटी की सभ्यता के काल के प्राप्त धातु पदार्थों में वंग पाया गया है। ऐसा अनुमान है कि उस समय वंगईरान से आता था। ईसा से पाँच शताब्दी पूर्वआयुर्वेद काल मेंसुश्रुत में त्रपु (वंग) तथावाग्भट्ट केअष्टांगहृदय में भी वंग के यौगिक का वर्णन आया है।रसरत्नसमुच्चय में वंग धातु तथा वैग भस्म दोनों के गुणों की विवेचना की गई है।
वंग मुक्त अवस्था में प्राप्त नहीं है। पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा लगभग ४० ग्राम प्रति टन है। इसके प्रमुख अयस्क हैं: कैसिटेराइट, (SnO2) और सल्फाइड। मलयेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, कांगो, नाइजीरिया तथा बोलिविया में वंग की मुख्य खानें हैं।
वंग केअयस्क में प्राय: १ से ५ प्रतिशत टिन ऑक्साइड (SnO2) उपस्थित रहता है। इस कारण इसे सांद्रित करना आवश्यक है। उच्च घनत्व तथा अचुंबकीय गुणों के द्वारा ही कैसिटेराइट का सांद्रण करते हैं। सांद्रित अयस्क को कोयले से मिश्रित कर परावर्तनी (reverberatory) अथवा वात्या (blast) भट्ठी में रखकर अपचयन (reduction) करने से वंग धातु प्राप्त होती है। अशुद्ध वंग के विशुद्ध करने की अनेक विधियाँ हैं।
वंग श्वेत रंग की कोमल तन्य (ductile) धातु है। इसके तार सरलता से खींचे जा सकते हैं, परंतु वंग की चादर मोड़ने पर कटकटाने की ध्वनि होती है, जिसेवंग की चिल्लाहट कहते हैं। धातु के दो अपररूपी रूपांतरण (allotropic modifications) हैं। सामान्य अवस्था में यह श्वेत रंग की धातु है, परंतु यदि वंग को अधिक काल तक १३� सें. ताप से नीचे रखा जाए, तो यह भुरभुरा एवं भूरे रंग के चूर्ण में परिवर्तित होकर वंग का दूसरा अपररूप बनाता है, जो निम्न ता पर स्थायी है।
वंग के कुछ भौतिक स्थिरांक ये हैं: संकेतSn, परमाणु संख्या ५०,परमाणु भार ११८.६९, गलनांक २३१.९ डिग्री सें., क्वनांक २,२७२ डिग्री सें., घनत्व ७.३१ ग्राम प्रति घन सेमी., परमाणु व्यास ३.१६ ऐंग्स्ट्रॉम, विद्युत् प्रतिरोधकता ११.५ माइक्रोओम-सेंमी. तथा आयनन विभव (ionization potential) ७.३ इवो (eV)।
सामान्य ताप पर वंग वायु द्वारा प्रभावित नहीं होता, परंतु उच्च ताप पर उसपर ऑक्साइ की परत जम जाती है। श्वेत ताप पर वंग वायु में जल कर डाइऑक्साइड, (SnO2) बनाता है। यह तप्त अवस्था में पीले रंग का और सामान्य ताप पर श्वेत रंग का पदार्थ है। वंग तनु अम्लों में धीरे धीरे घुलकर, (Sn++), यौगिक बनाता है और हाइड्रोजन मुक्त करता है। धातु पर सांद्रनाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा जलयुक्त स्टैनिक ऑक्साइड अथवा मेटास्टैनिक अम्ल (metastannie acid) बनता है। वंग क्षारीय विलयन में घुलकर स्टैनेट बनाता है, जिसके फलस्वरूप हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है।
वंग के दो प्रकार के यौगिक ज्ञात हैं: एक स्टैंनस, जिसमें वंग कीसंयोजकता २ है और दूसरा स्टैनिक, जिसमें वंग की संयोजकता चार रहती है। इसके दो ऑक्साइड, स्टैनस ऑक्साइ, (SnO) और स्टैनिक ऑक्साइ, (SnO2), होते हैं।गंधक के साथ वंग को गरम करने से स्टैनस सल्फाइड, (SnS) प्राप्त होता है। स्टैनिक सल्फ़ाइड (SnS2) भी बनता है।
हेलोजन के साथ वंग स्टैन्स हैलाइड और स्टैनिक हैलाइड बनाता है। वंग के क्लोराइड रंगबंधक के रूप में रेशम रंगने में काम आते हैं। यह नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और फ़ॉस्फोरस के साथ भी यौगिक बनाता है। इसके नाइट्रेट और फ़ॉस्फ़ेट अस्थायी होते हैं। क्लोरोस्टैनिक अम्ल का अमोनियम लवण, [(N H4)2 SnCl6] रेशम रंगने में काम आता है।
वंग अनेक उपसहसंयोजकता (coordinate) यौगिक बनाता है।
वंग मुलम्मा करने और मिश्रधातुओं के निर्माण में काम आता है। लोहे पर वंग से कलई करने पर उसपर न मुरचा ही लगता और न अम्लों का जल्दी असर पड़ता है। काँसा इसकी महत्व की मिश्रधातु है। खाद्य पदार्थों के डिब्बों में वंग की कलई करने से वे जल्द आक्रांत नहीं होते। वंग के अनेक यौगिकवस्त्र उद्योग, रँगाई, काँच एवंचीनी मिट्टी के पात्र के उद्योगों में काम आते हैं।