बेद चाहेवेद (शब्द के अरथ "ज्ञान") प्राचीन भारत के धार्मिक ग्रंथ हवें, वैदिक संस्कृत भाषा में रचल ई ग्रंथ, वर्तमानहिंदू धर्म के आदि ग्रंथ के रूप में मानल जालें। हिंदू लोग वेदन केअपौरुषेय आनित्य माने ला, मने कि जवना के रचना केहू ब्यक्ति न कइले होखे बलुक ऋषि लोग एह ज्ञान के प्राप्त क के बतवले होखे।
ई ग्रंथ आर्य लोग के ग्रंथ मानल जालें, हालाँकि, आर्य शब्द के इस्तेमाल भाषा आधारित हवे आ कौनों जाति भा नृजाती खातिर या "रेस" खातिर ना इस्तेमाल होला। पुराना समय में, जब एह वेद सभ के रचना भइल, आर्य लोग के लिखाई के जानकारी ना रहल आ ई ग्रंथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी इयाद क के पास भइलें; इनहन के बहुत बाद में जा के लिखल गइल। एही से इनहन के श्रुति कहल जाला।
वेद सभ के संख्या चार गो बा।ऋग्वेद,सामवेद आयजुर्वेद के वेदत्रयी के रूप में जानल जाला; चउथा वेद,अथर्ववेद के बाद के मानल जाला आ एह में लौकिक चीज, जादू-टोना आ अउरी बिबिध चीज के बर्णन बाटे। वैदिक साहित्य में एह चार गो वेद सभ के अलावा ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक आ उपनिषद सभ के शामिल कइल जाला। उपवेद सभ के वैदिक साहित्य में ना शामिल कइल जाला बलुक इनहन के वैदिकोत्तर (वेद के बाद के) साहित्य के रूप में मानल जाला।
संस्कृत भाषा के शब्दवेद के अरथ हवे "ज्ञान" आ ईविद्- धातु से बनल हवे जेकर अरथ होला "जानल" (क्रियावाची शब्द के रूप में)। एकरा के प्रोटो-इंडो-यूरोपियन भाषा में पुनर्रचना कइल जाला*u̯eid- के रूप में, आ एकर तत्कालीन अरथ "देखल" चाहे "जानल" बतावल जाला।[1]
एह शब्द से संबंधित अन्य शब्द बिद्या, बिद्वान वगैरह बाड़ें। भोजपुरी में बेद जाने वाला पंडित के बेदुआ कहल जाला।
संस्कृत केवेद (veda) आम नाँव के रूप में "ज्ञान" खातिर इस्तेमाल भइल बा[2] बाकी कुछ प्रसंग में ई अलग किसिम के अर्थ में भी बा, जइसे कि ऋग्वेद के मंत्र 10.93.11 में एकर अरथ "संपति हासिल कइल" बा,[3] कुछ अन्य जगहा पर एकर अरथ "घास के बोझा" झाड़ू नियर चाहे फिरहवन के आगि खाती भी इस्तेमाल भइल बा।[4]
संबधित स्भ्दवेदना ऋग्वेद में मंत्र 8.19.5 में आइल बा[5] जेकर अनुवाद ग्रिफ़िथ द्वारा "कर्मकांडी कथा",[6] सायन के भाष्य में "वेद के अध्ययन कइल", मैक्स मुलर द्वारा "घास के बोझा" आ एच एच विल्सन द्वारा "वेद के साथे" कइल गइल बा।[7]
ऋग्वेद आर्य लोग के सभसे पुरान ग्रंथ हवे। एह में प्रमुख रूप से, बिबिध देव लोग के स्तुती में सूक्त बाड़े, कुछ सूक्त अन्य तरह के भी बाड़ें। एह में सूक्त सभ के गिनती 1028 (चाहे 1017) बा आ कुल 10580 मंत्र बाड़ें। जग्य करावे वाला पुरोहित, जे एह मंत्र सभ के पढ़ें, "होता" कहायँ।
एकर तीन गो पाठ मिले लें, साकल्य (1017 सूक्त), बालखिल्य (11 सूक्त जिनहन के आठवाँ मंडल के परिशिष्ट/में प्रक्षिप्त मानल जाला), आ वाष्कल (56 सूक्त, अब मिले लें नाहीं)।
ऋग्वेद के कुल 10 मंडल में बिभाजित कइल गइल बा। एह में दुसरा से सातवाँ ले सभसे पुरान मानल जालें; पहिला, आठवाँ, नउवाँ आ दसवाँ के बाद के मानल जाला। ऋग्वेद के दू गो ब्राह्मण ग्रंथ मिले लें: ऐतरेय आ कौषीतकी। ई एकर गद्य वाला भाग हवें।
यजुर्वेद मुख्य रूप से जग्य के कर्मकांड से संबंधित हवे। 40 अध्याय के एह वेद में कुल 1990 मंत्र बाड़ें। जग्य के कर्मकांड करावे वाला पुरोहित के "अध्वर्यु" कहल जाय। एह वेद के दू गो शाखा, शुक्ल यजुर्वेद आ कृष्णयजुर्वेद बाड़ी सऽ।
सामवेद के रचना वेद के मंत्र सभ के गावे खाती भइल हवे। एह में आपन खुद के 75 गो मंत्र बाड़ें आ बाकी ऋग्वेद के हवें। ई जग्य में मंत्र के गावे वाला पुरोहित लोग के खाती कइल संकलन हवे, एह लोग के "उद्गातृ" कहल जाय।
सामवेद के दू गो उपनिषद हवें: छान्दोग्य आ जैमिनीय। छांदोग्य के सभसे पुरान उपनिषद मानल जाला। एही में पहिली बेर देवकी पुत्र कृष्ण के उल्लेख मिले ला।
अथर्ववेद चउथा वेद हवे। ई वेदत्रयी में ना शामिल हवे। जग्य के समय आवे वाला बाधा सभ क निवारण करे खातिर एकरा के ब्रह्मवेद भी कहल जाला। एह में कुल 731 सूक्त आ 6000 मंत्र बाड़ें जिनहन के 20 अध्याय में बिभाजन बा। एकरे मंत्र के पढ़े वाला के "ब्रह्मा" कहल जाय। एह वेद में वशीकरण, जादू-टोना वगैरह के बिबरन मिले ला।
अथर्ववेद के दू गो शाखा बाड़ी, शौनक आ पिप्पलाद। एकलौता ब्राह्मण ग्रंथ गोपथ ब्राह्मण हवे आ एकर कौनों आरण्यक नइखें। एह वेद के तीन गो उपनिषद हवें – मुंडकोपनिषद, मांडूक्योपनिषद आ प्रश्नोपनिषद। मांडूक्योपनिषद सभसे छोट उपनिषद हवे। परसिद्ध वाक्य "सत्यमेव जयते" मुंडकोपनिषद में आइल हवे।